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संक्षिप्त जैन इतिहास।
वानके संघमें गण भेदका पता चलता है। वीर संघमें कुल ग्यारह गणघर थे जिनमें प्रमुख इन्द्रभूति गौतम थे। श्वेतांवर शास्त्रों के अनुसार यद्यपि गणघर ग्यारह थे; परन्तु गण कुछ नौ थे। यह नौं वृन्द अथवा गण इस प्रकार बनाये गये हैं:
(१) प्रथम मुख्य गणधर इन्द्रभूति गौतम, गौतम गोत्रके थे और उनके गणमें ५०० श्रमण थे।
(२) दुसरे गणधर अग्निभूति भी गौतम गोत्रके थे। इनके गणमें भी ५०० मुनि थे।
(३) तीसरे गणघर वायुभूति, इन्द्रभूति और अग्निभूतिके भाई थे और गौतम गोत्रके थे। इनके आधीन गणमें भी ५०० मुनि थे।
(४) आर्यव्यक्त चौथे गणघर भारद्वाज गोत्रके थे। इनके गणमें भी ५०० श्रमण थे।
(५) अग्नि वैश्यायन गोत्रके पांचवें गणधर सुधर्माचार्य ये, निनके..आधीन ५०० श्रमण थे। .
(६) मण्डिकपुत्र अथवा मण्डितपुत्र वशिष्ट गोत्रके थे और २५० श्रमणोंको धर्म शिक्षा देते थे।
(७) मौर्यपुत्र काश्यप गोत्री भी २६० मुनियोंके गणधर थे।
(८) अपित गौतम गोत्री और हरितायन गोत्रके अचल व्रत दोनों ही साथर तीनसौ श्रमणों को धर्मज्ञान अर्पण करते थे।
..(९) मैत्रेय और प्रभास कौंडिन्य गोत्रके थे। दोनों के संयुक्त गणमें ३०० मुनि थे।
१-लाआम० पृ० ५६ व कसु० Js. I. 265.