SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११४] संक्षिप्त जैन इतिहास । और सिद्धांत थे, जैसे कि अन्य तीर्थदरोंके धर्मोमें थे और ननोंकी इस मान्यताको सब कई विद्वान् सत्य स्वीकार कर चुके हैं। किन्हीं विद्वानों का यह मत है कि भगवान महावीरजी जैन श्री महावीर न जैनधर्मके धर्मके संस्थापक हैं और उन्होंने ही संस्थापक थे औरन जैन जैनधर्मका नींवारोपण वैदिक धर्मके धर्म हिन्दू धर्मको विरोध में किया था किंतु उनका यह मत शाखा है। निर्मल है। आजसे करीब दो हजार वर्ष पहलेके लोग भी भगवान ऋपभनाथ नीकी विनय करते थे। और उन लोगोंने अन्य तेईस तीर्थंकरों की मूर्तियां निर्मित की थी। अब यदि जैनधर्म गंगथापक भगवान महावीरजी माने जावें, तो कोई कारण नहीं दिखता कि इतने प्राचीन जमाने में लोग भगवान ऋषभनाथको जैनधर्मका प्रमुख समझने और उनकी एवं उनके बाद हये तीर्थक्षरोंकी मूर्तियां बनाते और उपासना करते. निमपर स्वयं वैदिक एवं बौद्धग्रन्थों में इस युगमें जैनधर्मके प्रथम प्रचारक श्री ऋषभदेव ही बताये गये हैं। ___अथच नोंके सुक्ष्म सिद्धान्त, जैसे एत्री, जल, अग्नि आदिमें जीव बतलाना, अणु और परमाणुओं का अति प्राचीन पर मौलिक एवं पूर्ण वर्णन करना, आदर्श पूना आदि ऐसे नियम हैं जो जैनधर्मका अस्तित्व एक बहुत ही प्राचीनकाल तकमें सिद्ध कर १-भपा० पृ. ३८५-3८८ । -डॉ० ग्लैंसेनाथ (Dev jainur smus). और डॉ० जालकोपन्टियर यह स्वीकार करते हैं (केहिइ. पृ० १५४के उसू० भूमिका पृ० २१) ३-जैविओसो भा० ३ पृ. ४४७ व जेस्तू० पृ. २४...... ४-वविओजैस्मा० पृ. ८८-१००। ५-भागवत .४.५ व भपा० भूमिका । ६-प्रतशाच, वीर वर्ष ४ पृ० ३५३ ।
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy