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________________ १०२] संक्षिप्त जैन इतिहास । पांचाल, भद्रकार, पाटचा, मौक, मत्स्य, कनीय, सौरसेन एवं वृकार्थक) समुद्रतटके (कलिंग, कुरुनांगल, कैकेय, आत्रेय, कांबोज, वाल्हीक, यवनश्रुति, सिंधु, गांधार, सौवीर, सुरभीर, दशेरुक, वाडवान, भारद्वाज और क्वाथतोय) और उत्तर दिशाके (ताण, कार्ण, प्रच्छाल आदि) देशोंमें विहारकर उन्हें धमकी ओर ऋजु किया था।" श्वेताम्बरानायके 'कल्पसूत्र' ग्रंथमें भगवान के विहारका उल्लेख श्वेताम्वर शास्त्रों में चातुर्मासोंके रूपमें किया है। वहां लिखा है चातुर्मास वर्णन। कि चार चतुर्माप्त तो भगवानने वैशाली और वणियग्राममें विताए थे; चौदह राजगृह और नालन्दाके निकटवर्तमें, छै मिथिलामें; दो भद्रिकामें एक अलभीक में; एक पाण्डभूमिमें; एक श्रावस्तीम और अंतिम पादापुरमें पूर्ण किया था। किन्तु दिगम्बरानायके शास्त्र इस कथनसे सहमत नहीं है। उनका कथन है कि एक सर्वज्ञ तीर्थकरके लिये 'चतुर्मास' नियमको पालन करना भावश्यक नहीं है । उधर श्वेताम्बर शास्त्रोंमें परस्पर इस वर्णनमें मतभेद है। उपरोक्त वर्णनसे शायद यह ख्याल हो कि भगवानका विहार भगवान महावीरजीका केवल भारतवर्ष में हुआ था; किन्तु यह सुखदविहार और विदे- मानना ठीक नहीं होगा। जैन शास्त्र शोंमें धर्मप्रचार। स्पष्ट कहते हैं कि भगवानका विहार और धर्मप्रचार समस्त मार्यखंडमें हुआ था। भरतक्षेत्रके अन्तर्गत आर्यखंडका जो विस्तृत क्षेत्रफल जैन शास्त्रोंमें बतलाया गया है, :- उसको देखते हुये वर्तमानका उपलब्ध जगत उसीके अन्तर्गत सिद्ध १-हरि० पृ० १८।
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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