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२०० संक्षिप्त जैन इतिहास । जैनधर्मके प्रेमी यह राजा भगवानका विशेष स्वागत करनेमें पीछे रहे हों। उससमय मेवाड़ प्रांतमें स्थित मज्झिमिका नगरी भी बहु प्रख्यात् थी। वीर निर्वाण संवत ८४ के एक शिलालेखमें इस नगरीका उल्लेख है; उससे प्रगट होता है कि भगवान महावीरजीका मादर इस नगरके निवासियोंमें खूब था। सारांशतः जैनधर्मकी गति इस प्रांतमें अत्यन्त प्राचीनकालसे है । उडमैन तो जैनोंका मुख्य ही केन्द्र था।
राजपूतानेकी तरह गुजरातमें भी जैनधर्मका अस्तित्व प्राचीन जासतेकालसे है। भगवान महावीरजीका समोशमें वीर प्रभूका शरण दक्षिण प्रांतकी ओर होता हुमा यहां
पवित्र विहार । भी अवश्य पहुंचा था। इस व्याख्याको पुष्ट करनेवाले उल्लेख मिलते हैं । वावीसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथनीका निर्वाणस्थान इसी प्रांतमें है। गिरिनगर (जूनागढ़) के राजा जैन थे, यह जैन शास्त्रोंसे प्रगट है। कच्छदेश और सिन्धुलोवीरके राजा उदायन जैनधर्मके परमभक्त थे यह पहले लिखा जा चुका
। उनकी राजधानी रोरुकनगरमें भगवानका समोशरण पहुंचा था। रोरुक उस समय एक प्रसिद्ध बन्दरगाह था। लाटदेशमें उससमय जैनधर्मका खूब प्रचार था । भृगुकच्छमें राना वसुपाल थे। यहां • १-राइ० भा० १ पृ. ३५८-स्वयं मध्यमिकासे प्राप्त वि० सं० पूर्वकी तीसरी शताब्दिके आसपासकी लिपिमें अंकित लेखोमेसे एकमें पढ़ा गया है कि "सर्व भूतों (जीवों)की दयाके निमित्त......वनवाया।" -यह उल्लेख स्पष्टतः जैनोंसे सम्बन्ध रखता है, बौद्रोंसे नहीं । क्योंकि बौद्धोने सब भूतों (पृथ्वी जलादि)में जीव नहीं माना है । देखो कैहिद० पृ० १६१ । २-हरि० पृ० ४९६ । ३-कैहिइ० पृ० २१२ ।
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