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संक्षिप्त जैन इतिहास |
प्रख्यात था । उसीके संसर्गसे राजा को भी जैनधर्म में प्रतीत हुई थी । मईदास सेठने भगवान महावीरजीके निकट से व्रत नियम ग्रहण किये थे । उत्तर मथुरा के समान ही दक्षिण मथुरामें भी जैनधर्मका अस्तित्व उस समय विद्यमान थी । भगवानके निर्वाणोपरांत यहां पर गुप्ताचार्य के आधीन एक बड़ा जनसंघ होनेका उल्लेख मिलता है ।
भगवान महावीरजीका बिहार दक्षिण भारतमें भी हुआ था । दक्षिण भारत में कांचीपुरका राजा वसुपाल था और वह संभवतः वीर प्रभू । भगवानका भक्त था । (आक० भा० ३४० १८१) जिस समय भगवान हेनांगदेशमें पहुंचे थे, उस समय राजा सत्यं - धर के जीवंवर राज्याधिकारी थे | हेमांगदेश मानकल का महीसूर पुत्र ! (Mysore) प्रांतवर्ती देश अनुमान किया गया है; क्योंकि यहीं पर सोनेकी खाने हैं, मलय पर्ववर्ती वन है और समुद्र निकट है । हेमांगदेश के विषय में यह सच वातें विशेषण रूपमें लिखीं हैं । हेमांग देशकी राजधानी राजपुर थी जिसके निकट 'सुरमलय नामक उद्यान था । भगवानका समोशरण इसी उद्यानमें अवतरित हुआ था | राजा जीवंधर भगवान महावीरको अपनी राजधानी में पाकर बड़ा प्रसन्न हुआ था । अन्तमें वह अपने पुत्रको राजा बनाकर मुनि ढोगया था | सुन होकर वह वीर संघके साथ रहा था । जब वीरसंघ विहार करता हुआ उत्तरापथकी ओर पहुंचा था, तब जीवंधर मुनिराजने अग्रह केवलीरूपमें राजगृह के विपुलाचल पर्वतसे
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१- कौ० पृ० ६ । २ - वीर ६ ३ पृ० ३५४ । ३- आक० भा० १ पृ० ९३ ।