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________________ M ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर । [७९ माफ दी बुद्ध पृ०६६) वे चातुर्याम संवरसे स्वरक्षित, देखी और सुनी बातोंको ज्योंका त्यों प्रगट करनेवाले साधु थे (संयुत्त० ० १४० ९१) जनतामें उनकी विशेष मान्यता थी। (पूर्व ए० ९४)। सचमुच तीर्थकर भगवान के दिव्य जीवन में केवलज्ञानप्राप्तिकी भगवानका दिय एक ऐसी बड़ी और मुख्य घटना है कि उसका प्रभाव। महत्व लगाना सामान्य व्यक्तिके लिये जरा टेड़ी खीर है। हां ! जिप्तको आत्माके अनन्तज्ञान और अनन्त शक्तिमें विश्वास है, वह सहनमें ही इस घटनाका मूल्य समझ सक्ता हैं। केवलज्ञान प्राप्त करना अथवा सर्वज्ञ होनाना, मनुष्य जीवनम एक अनुपम और अद्वितीय अवसर है । भगवान महावीर जब सर्वज्ञ होगये, तो उनकी मान्यता जनसाधारणमें विशेष होगई। उस समयके प्रख्यात राजाओंने भक्तिपूर्वक उनका स्वागत किया। प्रत्येक प्राणी तीर्थकर भगवानको पाकर परमानन्दमें मग्न होगया। चौद्ध शास्त्र भी महावीरजीके इस विशेष प्रभावको स्पष्ट स्वीकार करते हैं। मालूम तो ऐसा होता है कि भगवान महावीरके कार्यक्षेत्र में अवतीर्ण होनेसे उस समयके प्रायः सब ही मतप्रवर्तकोंक भासन ढीले होगये थे और भगवान की प्राणी मात्रके लिये हितकर शिक्षाको प्रमुखस्थान मिल गया था। उस समयके प्रख्यात मतपक म. गौतम बुद्ध के विषयमें म० गौतम वडके तो स्पष्ट है कि उनके जीवनपर भगवान जीवनपर भगवान महावीरकी पर्वज्ञ अवस्थाका ऐसा प्रबल महावीरका प्रभाव। प्रभाव पड़ा था कि भगवान महावीरके धर्म १-संयुक्तनिकाय भा० १ पृ. १४ ।
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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