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जिम पदार्थों के मंग्रह और रजाति में निम्न्ता मारमा चिरिया गाकुल हो जाती है, से श्री. धन-धान्य, दासी. दाम मादि बहिण परिमा का माया या मांशिक त्याग को प्राविधन्य धम कहते है। क्योंकि वास्तविक निगल अवस्था परिग्रह त्याग से ही होती है
१०-उत्तम बनवार्य शीलवार ना गम, प्राप्रभाग अनर लम्बी। करि दोनों अधिनाम्बकरहमफन नाभन महा।। मन, वचन, काया में श्री मात्र का त्याग करना पूर्ण प्रापयं है। अथवा मन, वचन, कागा म पानी स्याग और अपनी विवाहित ममें मन्नोपना देश ब्रह्मचय है। दिगो की पमानना श्रीर मन को पटना का प्रभान कारण निक ('नाम कमि. )। काम सामना एक.मी भयानक गासना है कि उमा भाचन माघ मन्न, नस्वी प्रामादि महा. पर भी ना के कप में माना जात है. उम ममय माम जान पर क नगर जाता है। उस ममय य विचार प्रारमा में नहीं ना कि जिस नभर भर में प्रामन उसका कम्प क्या है और उसका भारमा माय क्या भेटी पर मंच कान ? म ममय ती
कर्गनिया के मशुचि नन में. काम गंगारनि करें। बह मृतक महिमसान, माही काफ ज्यों चीन भरे ।।
इम नगह के निरा शरीर में किमी नाह की प्रामकि का न का ब्रह्मचर्य है । प्रथमा उन वामनानी म गहिन होकर माम