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पहला गुण स्थान अविकास काल है, दूसरे तथा तीसरे में विकास का स्फुरण होना प्रारम्भ हो जाता है। किन्सु फिर भी प्रधानता अधिकाम को ही रहती है। चौथे गुण स्थान से विकास का कार्य अच्छी तरह प्रारम्भ हो जाता है और इसी चौदहवें गुण स्थान पर जाकर प्रारमा पूर्ण कला पर पहुंच जाती है। उसी के बाद मोक्ष प्राप्त होता है। इसो को हम संक्षेप में इस प्रकार भी वर्णन कर सकते हैं। पहलवाले तीन गुणस्थान अधिकास के हैं और अन्तिम शेष के ग्यारह विकाम काल के हैं और उसके पश्चात मोक्ष का स्थान रहना है। ___ या विषय बन ही पदम नया गूद होने से जन-धर्मावलम्बी ममाज इसके पति बहुत ही कम ध्यान देती है। किन्तु यदि वे धैर्य से काम लेवें तथा इमको ममझने के प्रति भी विशेष रुचि रखने की चष्टा करें, तो बहुत ही सरलता से उन्हें समझा जा सकता है और उसके पति सभी का ध्यान भी प्राकृट हो सकता है। यह प्रास्मिक उन्नति के लिये विवेचनावाली स्थिति है। इसी को मोक्ष-मन्दिर की मोदी भी कहें. तो भी अनुचित नहीं कहा जा मकता | जिम प्रकार मनुष्य मकान की छत पर जाने के लिये मोदो या जीने का उपयोग या सहायता लेने हैं और उसकी एक-एक सोढ़ी चढ़कर जल्दी या देर से छत पर पहुंचते हैं-ठीक उसी प्रकार. मोक्ष मन्दिर की छत पर चढ़ने के लिये चौदह गुणस्थानवाली मीढ़ के द्वारा देर या जल्दी से चढ़कर मनुष्य मोक्ष मन्दिर के द्वार में प्रवेश करने में ममर्थ हुश्रा करते है।
चौदा गुणस्थान ( १ ) मिथ्याव ( २ ) मासादन ( ३ ) मिश्र (४) अविरत