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का विभिन्न दृष्टि-विन्दुओं से विचार करना. देखना, या कहना । म्याद्वाद के भावार्थ में कुछ विद्वानों ने अपेक्षावाद का शब्द प्रयुक करने की कृपा की है। किसी एक वस्तु में अमुक-अमुक अपेक्षा ( सम्बन्ध ) से भिन्न-भिन्न धर्मों को स्वीकार करने ही को स्याद्वाद का नाम दिया जाता है। उदाहरण म्वरूप एक मनुष्य है । वह भिन्न भिन्न या अमुक-अमुक अपेक्षा या सम्बन्ध में पिता, पुत्र, चाचा, मामा, भतीजा, भांजा, पति आदि माना जाना है। उमो ढङ्ग से ही एक ही वस्तु में भिन्न भिन्न अपेक्षा से भिन्न-भिन्न धर्म माने जाते हैं। अब ममझने-समझाने के लिये हम घड़े को लेते हैं। एक ही घड़ा (घट ) है; उसमें नित्यत्व तथा अनित्यत्व आदि विभिन्न धर्म के दिखाई देनेवाले धर्मों की अपेक्षा दृष्टि में स्वीकार करने ही के नाम को जैन दर्शन के मिद्धान्न में स्याद्वाद दर्शन का नाम देने में आया है। ___घड़ा का दृष्टांत स्यावाट क समझनेवालों के लिये बड़ा ही युनियुक्त है। जिम मिट्टी में उस घड़े को कुम्हकार ने निर्माण किया है, उसी से ही उमने अनेक प्रकार के अन्य बर्तनों को भी नैयार किए होंगे। खैर, यदि उसी घड़े को फोड़कर वही कुम्हकार उमसे और अन्य प्रकार का बर्नन नैयार कर लेवे, तो कोई भी उम नवीन नैयार किए गए बनन को घड़ा न कहेगा। वही मिट्टी और द्रव्य रहने पर भी घड़ा न कहने का फिर कारण क्या है ! उमका कारण नो यही है न कि बम बनन का प्राकारप्रकार घडू का-सा नहीं है। इससे यह प्रमाणित होता है कि घड़ा मिट्टी का रहने पर भी उसका एक प्राकार-विशेष है। यहाँ यह ध्यान में रखना उचित है कि आकार-विशेष मिट्टी में एकदम ही भिन्न नहीं हो मकना । एक ही मिट्टी आकार परिवर्तन के जरिए घड़ा, नाद, सकोग तथा मटका श्रादि के नामों से