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स्याद्वाद
'अनेक मिद्धान्तों का अवलोकन कर, उसके ममन्वय (मिलाप) करने के लिये यह शब्द प्रकट करने में पाया है । म्याद्वाद एकीकरण का दृष्टि-विन्दु हमारे सामने उपस्थित करता है। शङ्कराचार्य ने म्याद्वाद पर जो अाक्षर किए हैं. वे मूल रहस्य के माथ में मम्बन्ध नहीं रयते । यह निश्च। कि विविध पि विन्दुओं द्वारा निरीक्षण किए बिना कोई भी वस्तु मम्पूर्ण रुप में श्रा नहा मकती। इसीलिये स्याद्वान उपयोगी नथा साशंक है महावीर के मिद्धांत में बनाए गए म्याग्द को कितने ही लोग मशयवाद कहते हैं, इसे मैं नहीं मानना। म्यादाद संशयवाद नहीं है. किन्तु वह एक दृषि विन्द हमको उपलब्ध करा देना है। विश्व का किम गति से अवलोकन करना चाहिए यह हमें मियाना है। -काशी हि विश्वविद्यालय के भूतपूर्व प्रो बाइसlent तब संस्कृत
साहित्य पुरावर विद्वान प्रो. मानन्द शर बा१माई yा
जन नव ज्ञान की प्रधान नींव पाद्वान पर ही स्थित है, एमा देश तथा विदेश के सभी विद्वानों ने एक मन से बोकार किया है। कुछ धन्धा विद्वानों का नो यहाँ नक र मन है कि हमी म्यादाद के ही प्रताप से भगवान महावीर ने अपने प्रतिद्वनियों को पगम करने में अपूर्व मफलता प्राप्त की थी। जैन-नबज्ञान में स्याहादवाद का ठीक-टंक क्या अर्थ है. उसका यथार्थ जानने