________________
( ४८ ) अनेक परभोजी हा प अपने पात्र में श्रावक से भोजन लेले फिर
और घरों में जाकर भोजन ले । जहां उदर-पूर्ति तक मिल जावे वहीं प्राशुक पानी ले भोजन करले अपना पात्र स्वयं धो लेवे यह कतरनी या छुरी से बाल लोच कर सकता है।
(२) ऐलक-जो एक लंगोटी मात्र ही रखता है। एक ही घर बैठकर हाथ में जो रक्खा जावे उसे संतोष से जीम लेता है। यह केशों को अपने हाथ से लोच करता है । काठ का कमंडल रखता है।
इन ग्यारह श्रेणियों में आगे की श्रेणी वाला पिछली श्रेणी के चारित्र को छोड़ता नहीं है किन्तु बढ़ाता जाता है। ये दरजे इतने बढ़िया पद्धति से कहे गए हैं कि इनके द्वारा धीरे धीरे एक श्रावक गृहस्थ मुनि या साघु होने की योग्यता पढ़ाता जाता है उधर आत्म ध्यान करने का बल बढ़ता जाता है । हर एक श्रेणी वाले श्रावक को व कम से कम दूसरी श्रेणी से शुद्ध भोजन करना चाहिये जिसमें मांस मध का कोई दोष न लगे । चर्म में रक्खा हुआ घी तेल पानी नहीं लेना चाहिये। मर्यादा का शुद्ध भोजन पान व्यवहार करना चाहिये । इस भारतवर्ष की ऋतु की अपेक्षा भोजन की मर्यादा इस तरह जैनमत के आचरण में वर्ती जा रही है। (१) को रसोई दाल भात आदि की बनने के समय से ६ घंटे तक। (२) पकी रसोई पूरी मुलायम आदि दिन भर रात वासी नहीं। (३) मिठाई, सुहाल आदि २४ घंटे तक। (४) केवल अन्न और घी से बनी मिठाई पिसे हुए आटे की मर्यादा
के समान अर्थात् ७ दिन जाड़े में, ५ दिन गर्मी में ३ दिन वर्षात में।