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स्वामी गुरु भद्राचार्य श्रात्मनुशासन में यही कहते हैंआशा गर्त्तः प्रति प्राणि यस्मिन् विश्वमणूपम् । कस्य किं कि यदायाति, विषयैषिता ॥ ३६ ॥
वृथावो
भावार्थ- हर एक प्राणी के भीतर आशा या इच्छा का गड्ढा इतना गहरा है कि उसके भीतर यदि सर्व जगत के भोग्य पदार्थ डाल दिये जावें तब भी वह सब एक अणु के बराबर हो जायगे । अर्थात् उसकी आशा पूरी नहीं होगी और जगत के पदार्थ तो जो हैं सा हैं। किस किस के हिस्से में क्या क्या वस्तु आयगी क्योंकि लेने • वाले अनन्त प्राणी हैं इससे तुम्हारी विषय भोग की इच्छाएं वृथा हीं है पूरी कभी नहीं हो सकतीं हैं ।
स्वामी श्रीमन्त भद्रश्राचार्य स्वयं भू स्तोत्र में कहते हैंतृष्णा चिषः
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परिदहन्ति न शान्ति रासा - मिष्टेन्द्रियार्थं विभवैः परिवृद्धिरेव | स्थित्यैवकाय परिताप हरं निमित्तमित्यात्मवान् विषय सौख्य पराङ्मुखोऽभूत् ॥ ८२
भावार्थ - तृष्णा की अग्नि ज्वालाएं प्राणियों को जलाती हैं। इनकी शांति इन्द्रियों के पदार्थों के भोगने से भी नहीं होती । उल्टी