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खतरे के स्थान
शम की मन्दतावाले सम्यक्त्वी जीवो मे तो उपादान और निमित्त भी जोरदार असर कर जाते हैं। जमाली और उसके अनेक साथियो तथा महासती सुदर्शना के मिथ्यात्व को उदित होते, स्वय भगवान् महावीर जैसे उत्कृष्टतम निमित्त भी नही रोक सके, और बिछौने जैसा सामान्य निमित्त भी जमाली आदि श्रमण श्रमणियो के मिथ्यात्वोदय का कारण बन गया। भगवान् महावीर के समीप रहते हुए भी श्री मेघ मुनि का मन्द क्षयोपशम, दर्शन-मोह के उदय के आगे टिक नही सका और मिथ्यात्व आ धमका । मन्द क्षयोपशम वाले जीवो की ऐसी दशा हो जाती है । इसीलिए महान् उपकारी जिनेश्वर भगवतो ने हमे सावधान रहने का उपदेश यिया है । हमे चाहिए कि उन परमोपकारी जिनेश्वरो के वचनो पर विश्वास करके उन दोष के स्थानो से बचते रहे।
खतरे के स्थान हमने यह तो मान लिया कि जिसके हृदय मे निर्ग्रन्थ प्रवचन के प्रति दृढ श्रद्धा है, वह सम्यग्दृष्टि है। किंतु निर्ग्रन्थ प्रवचन' किसे समझना ? कौन-सी बात निर्ग्रन्थ प्रवचन के अनकूल है और कौन-सी प्रतिकूल है ? जब हम एक ही परम्परा, के मानने वालो मे परस्पर मत-भेद देखते है-तत्त्व विषयक विभिन्न विचार देखते है तो मति कुंठित हो जाती है। ऐसे समय हम किस मार्ग को अपनावे ? किस कसौटी पर कस कर यह परीक्षा करे कि 'निर्ग्रन्थ प्रवचन' क्या है ?