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मार्ग एक या अनेक ?
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प्राता है और सुन्दराकार बनकर भी आता है । बीभत्स रूप मे आये हुए मिथ्यात्व से तो समझदार बच सकते हैं, किंतु सुन्दर रूप मे सजधज कर आया हुआ मिथ्यात्व, बड़े बडे समझदारो को भी चक्कर में डालकर अपने चंगुल में फंसा लेता है। जिस प्रकार ऊपरी चमक-दमक और नाज-नखरो को देखकर लोग, बदसूरत पर भी प्रासक्त हो जाते हैं, उसी प्रकार मुन्दर प्रावरणो में रहा हुप्रा मिथ्यात्व, सम्यग्दृष्टियो को भी अपनी ओर खीच लेता है । भले ही आभिग्रहिक अथवा प्राभिनिवेशिक मिथ्यात्व नही हो,प्रकृति सरल हो और जैसा समझ मे आया वैसा स्वीकार किया हो। किंतु इससे क्या हुआ ? क्या मिथ्यात्व रूपी विष, सरलता के कारण अमृत हो गया ? नही, सरलता और विश्वास के साथ, सोने के भरोसे खरीदा हा पीतल, खरीददार को दुखदायक ही होता है।
वास्तव मे मिथ्यात्व भयकर वस्तु है । जब तक यह प्राणी के साथ लगा रहता है, तब तक वह घनचक्कर ही बना रहेगा। उसके चार गति के चक्कर मे कोई कमी नही आयगी। इसलिए मिथ्यात्व के गाढ़ बन्धन से मुक्त होना ही जीव की बडी भारी सफलता है।
मार्ग एक या अनेक ? प्रश्न-हम प्रत्यक्ष देख रहे हैं कि किसी एक स्थान पर पहुँचने के अनेक मार्ग होते हैं, जिस पर चल कर कोई भी मनुष्य या पशु, उस स्थान पर पहुंच सकता है, उसी प्रकार मोक्ष के भी अनेक मार्ग होने चाहिए और किमी भी प्रकार की