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सम्यक्त्व विमर्श
मैं मानता हूं, क्योकि सम्यग्दर्शन ही मोक्ष का मुख्य अंग कहा है।
प्राप्नुवन्ति शिवं शश्वच्चरणज्ञानविश्रुताः । अपि जीवा जगत्यस्मिन्न पुनदर्शनं विना ॥५८॥
-जो जीव, चारित्र और ज्ञान के कारण इस जगत मे प्रसिद्ध हैं, वे भी सम्यग्दर्शन के बिना मोक्ष प्राप्त नही कर सकते। अतुलसुखनिधानं, सर्वकल्याणबीजं ।
जननजलधिपोतं, भव्यसत्वैकपात्रम् ।। दुरिततरुकुठारं पुण्यतीर्थप्रधानं,
पिबत जित विपक्षं दर्शनाख्यं सुधाम्बुम् ॥५६॥
-हे भव्य जीवो | तुम सम्यग्दर्शन रूपी अमृत का पान करो। यह सम्यग्दर्शन, अतुल्य सुख का निधान है । सभी प्रकार के कल्याणो का कारण है, ससार समुद्र से तिरानेवाला जहाज है। इसे केवल भव्य जीव ही प्राप्त कर सकते हैं। यह पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुठार के समान है । यह पवित्र तीर्थों मे प्रधान है और अपने विपक्ष ऐसे मिथ्यादर्शन रूपी शत्र को जीतने वाला है। इसलिए सबसे पहले इस अमत को ही ग्रहण करना चाहिए।
आराधनासार मे लिखा है कियेनेदं त्रिजगद्वरेण्यविभुना, प्रोक्तं जिनेन स्वयं । सम्यक्त्वाद्भुत-रत्नमेतदमलं, चाभ्यस्तमप्यादरात् ॥