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सम्यक्त्व विमर्श
क्या बाधा हो सकती है ? आज के मिथ्यात्व प्रधान युग मे यदि कोई व्यक्ति यथार्थ दृष्टि प्राप्त कर सके और प्राप्त सम्यक्त्व को सुरक्षित रख सके, तो यह उसकी महान् सफलता - केवलज्ञान प्राप्ति के समान मानी जानी चाहिए, क्योकि सम्यक्त्व, केवलज्ञान के मूल के समान है - बीज के सदृश है । यह प्राप्त हुई और कायम रही, तो विरति का अंकुर उत्पन्न होगा और उसमे श्रप्रमत्तत्ता का पुष्प और वीतरागता सर्वज्ञता का फल प्राप्त हो सकेगा । बीज की प्राप्ति को फल की प्राप्ति के समान मानना, नई बात नही है ।
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पाठक समझ गए होगे कि सम्यक्त्व कितनी दुर्लभ है । इस समय केवलज्ञान तो अलभ्य है ही । उस उदयकाल मे केवलज्ञान जितना दुर्लभ नहीं था, उतनी दुर्लभ आज सम्यक्त्व हो गई है । श्रीमद् हेमचन्द्राचार्य, आज से ६०० वर्ष पूर्व कह गए हैं कि - 'इस समय सम्यक्त्व की प्राप्ति केवलज्ञान के समान माननी चाहिए ।' श्राज का जमाना उससे भी अधिक हीन हो रहा है । इसलिए निर्ग्रथ प्रवचन के रसिको को समयक्त्व रूपी महान् रत्न को सुरक्षित रखने की पूरी सावधानी रखनी चाहिए ।
इस अनमोल रत्न की रक्षा करो
यह सम्यग्दर्शन ऐसा अनमोल रत्न है कि इसके धारक की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती है । यह चिंतामणि- रत्न से भी अधिक मूल्यवान् है । चिंतामणि रत्न, भौतिक वस्तु देता है,