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सम्यक्त्व विमर्श
हो सकते है।
शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए, शत्रु के शत्रु की सहायता लेनी पड़ती है। उसे मित्र बनना पडना है। इसी प्रकार
बन्ध रूपी शत्रु को नष्ट करने के लिए, बन्ध के शत्रु ऐसे सवर ___ और निर्जरा की सहायता से युद्ध चलाना पडता है । इस युद्ध
का लक्ष तो पर से सर्वथा मुक्त होने का ही है, किंतु बन्धनकारक गुलामी मे जकडने वाले-शत्रुरूप पर से मुक्त होने के लिए, मित्ररूप-बन्धन काट कर स्वतन्त्र बनाने वाले पर का सहारा लेना पड़ता है। यही सरल और सीधा मार्ग है।
जिन विचारो और कृत्यो से बन्धन बढ़ते हैं, उनमे विपरीत परिणति से बन्धन कटते है-यह सामान्य सिद्धात है । पर से प्रीति करने, उसे अपनाने और उस पर आसक्त होने से बन्ध-परंपरा बढी, अब उससे उलटी परिणति से-हिसादि पाप तथा विषय-कषायरूप पर की प्रीति-पासक्ति का त्याग करके, उनसे पृथक् होने पर बन्ध रुकता है और लगे हुए पूर्व के बन्ध टूटते है, यह समझना कठिन नही है।
एक प्रशस्त 'पर' के अवलम्बन से, अनन्त अप्रशस्त पर से सबंध छूटता है । एक दुर्दान्त महान योद्धा की शरण में जाने से, हजारो लाखो वैरियो से रक्षा होती है। पुलिस का आश्रय लेने पर चोरो एव हत्यारो से बचा जाता है। इस प्रकार एक अरिहत देव का अवलम्बन लेने से-ध्यान करने से, उस समय ससारके अनन्त पर का लक्ष्य छूटता है। अनन्त विजातीय एव शत्रु रूप पर से मुक्त होने के लिए, एक सजातीय मित्र