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सम्यक्त्व विमर्श
कितनी तथ्य-हीन बात है ?
परमतारक प्रभु महावीर से साक्षात्कार होने के पूर्व श्री इन्द्र भूतिजी आदि भी अपने आपको सत्पथगामी और भगवान को दभी एव इन्द्रजालिक मानते थे।
श्री आर्द्रकुमार निर्ग्रन्थ के सम्पर्क मे आनेवाले तापसादि अपने को सत्पथगामी ही मानते थे। जमाली भी अपनी विचारणा को सत्य मनता था और भगवान के सिद्धात को असत्य कहता था, किंतु ये सब असत्य सिद्ध हुए। अतएव बिना सैद्धातिक कसोटी के अपनेयापको सम्यगदष्टि मानना भ्रम है-बुद्धि का विपर्यास है।
___ मनुष्य, अपनी बुद्धि, विचारणा और निश्चय के अनुसार किसी बात का निर्णय करलेता है एवं तदनुसार ईमानदारी पूर्वक निष्कपट भाव से प्रचार भी करता है, किन्तु उसकी विचारणा एवं निश्चय, निर्दोष ही है, भ्रम रहित ही है, यह कैसे कहा जा सकता है ? यदि ईमानदारी से किये हुए सभी निर्णय सत्य ही होते हो, तो अपील-कोर्टो मे कोई भी निर्णय नही बदला जाना चाहिए, और अपील-कोर्ट की आवश्यकता ही नही रहनी चाहिए। अपील-कोर्ट से भी मुले होती है। कभी निर्दोष दडित हो जाते है और अपराधी निर्दोष होकर छूट जाते है । अतएव 'मनुष्य का अपना निर्णय सत्य ही होता है'-यह मानना भूल है। जव पौद्गलिक विषयो मे भी भ्रम से असत्य निर्णय हो जाते हैं, तब तात्त्विक एवं यात्मिक विषय में मनस्वी निर्णय सत्य ही होता है-यह कहना तो दु साहस ही है।