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सम्यक्त्व विमर्श
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भी अनभिज्ञ था, उसने कह दिया कि हाथी बहुत बडा होता है,उसकी टांगे लम्बी, पीठ पर कुबड और मुह बहुत लम्बा और शरीर से भी ऊँचा होता है । इस प्रकार ऊँट को हाथी बता दिया। किसान ने पटेल के बताये स्वरूप को सत्य मान लिया। एकबार उसके सामने हाथी आ गया, तो भी वह उसे हाथी नही मान सका, किंतु ऊँट को देखकर वह खुशी से उछल पडा और बोला कि-'बस यही हाथी है। मुझे इसे ही देखना था' । इस प्रकार गलत धारणा बन जाने से जब तक वह भूल नही सुधरे, तब तक सही जानकारी प्राप्त नही हो सकती और बिना यथार्थ ज्ञान के वास्तविक वस्तु मिल नही सकती । अज्ञानता के कारण कांच के टुकड़े को ही असल हीरा मानकर ठगा जाना असंभव नही है । इस प्रकार मोक्ष की इच्छा होते हुए भी यथार्थ स्वरूप की अनभिज्ञता के कारण मोक्ष की प्राप्ति नही हो सकती।
___ यह भी एकान्त रूप से नही कहा जा सकता कि जीवादि तत्त्वो के भेद प्रभेदो को जानने वाला ही सम्यग् दृष्टि हो सकता है, क्योकि ऐसे भी जीव होते हैं, जो 'विषय प्रतिभास ज्ञान' या दीपक-सम्यक्त्व वाले होते हैं । वे जानने और प्रतिपादन करते हुए भी श्रद्धा के अभाव मे असम्यग्दृष्टि रहते है । और ऐसे भी जीव होते है जो विशेष रूप से नही जानते हुए भी "तमेव सच्च णीसंकं जं जिणेहि पवेइयं"-जिनेश्वर भगवान् ने जो कहा वह सत्य ही है, ऐसी श्रद्धा रखते हुए सम्यग्दृष्टि होते है। ऐसा भी हो सकता है कि जिनेश्वर भगवान् मे पूर्ण श्रद्धा रखता हुआ, कभी असम्यग् वस्तु को भी सम्यग् मान ले, वो