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श्रद्धालुओं का परम आधार
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उसके सामने मौजूद रहती है । देव के बताये हुए गुरु के लक्षणो से युक्त, सर्वत्यागी, मुक्ति-पथ के पथिक, निरवद्य जीवन व्यतीत करने वाले और जिनेश्वर भगवत के वचनो का प्रचार करने वाले ही सच्चे गुरु हैं । वे मुक्ति-पथ के सार्थ हैं । प्राचार्य उनके सार्थवाह हैं, इतना ही नही, वे जिनेश्वर भगवंत के प्रतिनिधि हैं और अपनी साधना से वे शीघ्र ही जिनेश्वर के समान होने वाले हैं । निग्रंथ मुनिराज, सम्यग्दृष्टियो के लिए दूसरे प्राधार है।
वर्तमान समय मे इस गुरु पद का वेश धारण करके कई लोग अपनी कुश्रद्धा और कदाचार से निग्रंथ-धर्म का लोप करते है । कई ससार-मार्ग के प्रचारक बन गये हैं । उन्हे अपने वेश का भी विचार नहीं होता। वे जैन-मुनि कहाते हुए भी जिनेश्वरो का महत्व गिरावे, और उन्हे अन्य रागी एवं अल्पज्ञो की श्रेणी मे रखे, तथा सावध प्रचार करें, तो वे वास्तव मे सुगरु नही, कुगुरु हैं । सुगुरु के वेश मे कुगुरु हैं । सम्यग्दृष्टियो का कर्त्तव्य है कि ऐसे धर्म-घातक स्वागधारियो का संसर्ग भी, कूगरु त्याग की तरह त्याग दें। ऐसे लोग तथा-रूप के कूगरु से भी अधिक भयानक होते हैं ।
सम्यक्त्व प्राप्ति और स्थिति का तीसरा प्राधार, सम्यकश्रुत है । सम्यक्-श्रुत वह है-जिसमे निग्रंथ-प्रवचन सुरक्षित है। ऐसे आचारागादि सम्यक्-श्रुत के श्रवण, पठन, मनन से सम्यक्त्व की प्राप्ति, स्थिति, रक्षा और वृद्धि होती है। सम्यक-श्रत, उत्थान में सहायक होता है । इसके आधार से हम देव और