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विज्ञान-भूमिका की दशा
२२७ Rcrore............. पडता है । दर्शन प्राप्ति के बाद चारित्र, मुक्ति का प्रत्यक्ष साधन हो जाता है। दर्शन का गुणस्थान मात्र एक ही है-चौथा, लेकिन शेष दस गुणस्थान चारित्र के ही हैं । अतएव चारित्र का महत्व भी कम नही है। यह महत्व भी दर्शन सहचारी चारित्र का ही है, दर्शन रहित चारित्र का महत्व कुछ भी नही है। आगे के सभी गुणस्थानो मे दर्शन साथ रहता ही है। तात्पर्य यह कि चारित्र भी वही मूल्यवान और कार्य-साधक होता है, जो सम्यक्त्व युक्त हो ।
जिस प्रकार मोहनीय कर्म के क्षय हो जाने के बाद शेष तीन कर्मों का क्षय हो जाना अत्यत सरल होता है और अघातिकर्मों का क्षय भी सरल हो जाता है, उसी प्रकार दर्शनमोहनीय के हटने से चारित्रमोहनीय का क्षयोपशमादि भी देर-अबेर होता ही है, अर्थात् सम्यक्त्व प्राप्ति के बाद देर से भी हो, पर कभी न कभी चारित्र की प्राप्ति हो ही जाती है, क्योकि सम्यग्दृष्टि जीव, चारित्र रुचि-वाला होता है । यदि वर्तमान मे वह चारित्रमोहनीय के उदय से चारित्र का अंशत. भी आराधन नही कर सकता, तो उसकी चारित्र रुचि उसे कालान्तर मे चारित्र दिला. कर रहेगी।
विज्ञान-भूमिका की दशा विज्ञान-भूमिका को प्राप्त हुई भव्यात्मा मे निग्रंथ-प्रवचन के प्रति अत्यन्त रुचि होती है। वह स्वीकार करती है कि
"सद्दहामिणं भंते ! निग्गंथं पावयणं, पतिया