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मिथ्याश्रुत का पठन-पाठन
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मिथ्याश्रत तो अपने ग्राप मे मिथ्याश्रुत ही है। श्री नन्दीसूत्र
और अनुयोगद्वारसूत्र मे जिन आचारागादि श्रुत को सम्यग्श्रुत बतलाया है, वही सम्यग् श्रुत है, शेष सब मिथ्याश्रुत है । उसका पठन पाठन वर्जनीय ही है।
जिस प्रकार कोई विशेष प्रकार का रोगी, विष प्रयोग से नीरोग हो जाय, तो भी विष, अमत नही माना जाता । वह विष ही रहेगा, उसी प्रकार मिथ्याश्रुत के विषय मे भी समझना चाहिए।
किसी शास्त्र मे लिखा-हो कि-"न तो मास भक्षण में दोष है, न सुरापान मे और न मैथुन सेवन मे ही दोष है। पुत्रेच्छा से मैथुन करना चाहिए । विरोधियो का दमन करना चाहिए । धन-लाभ, पुत्र-लाभ और सुख प्राप्ति के लिए बलिदान करना चाहिए । हे भगवन् । हमारे शत्रुओ को नष्ट कर दे,
और हमे धन धान्यादि से परिपूर्ण बना दे।" अथवा जो देव कहे कि-"मैं दुष्टो का सहार करने के लिए और धर्म की रक्षा के लिए अवतार धारण करूगा।" इत्यादि प्रकार के वचनो को पढकर कोई समझदार व्यक्ति.सोचे कि क्या ये भी आत्मोद्धार करने वाले शास्त्र हैं ? जिन बचनो मे पोद्गलिक आकाक्षाएं रही हुई है.और जिनमे त्याग विराग की मुख्यता नही है, ऐसे .शास्त्र, प्रात्मा के लिए . उपकारक कैसे हो सकते हैं ?.ये तो संसार-भ्रमण का ही मार्ग बताते हैं,' इस प्रकार विचार करते, जिसकी प्रात्म-परिणति सुधार कर दर्शन-मोह का क्षयोपशमादि .हो जाय और पूर्वभव की प्रवरुद्ध पर्याय खुलकर सम्यक्त्व प्राप्त