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अक्रिया मिथ्यात्व । २०३ more.......one...... ..... .............. विपरीतता चाहे देश रूप मे हो या सर्वरूप मे, थोडी हो या बहुत, सम्यक्त्व के लिये बाधक होती है। वैसे जितने भी मिथ्यात्व हैं, वे सभी विपरीत-प्रतिकूल ही है। धर्म को अधर्म, अधर्म को धर्म इत्यादि सभी प्रकार के मिथ्यात्व, विपरीतता से ही निष्पन्न होते हैं । इसलिए प्रतिकूलता मात्र विपरीत-मिथ्यात्व है। इसमे सभी प्रकार के मिथ्यात्व का समावेश हो जाता है। जमाली, थोडी-सी विपरीतता के कारण मिथ्यात्वी हुआ और 'निन्हव' कहलाया। किंचित् विपरीतता भी महामिथ्यात्व का कारण बनती है । जिसने जिन-प्रवचन से थोडी भी विपरीतता की, तत्त्वो मे मनमाना फेर कर दिया, उसने जिनेश्वर से असहमति बता कर, सुदेव से ही इन्कार किया । जमाली की ऊपर से किंचित् दिखाई देने वाली विपरीतता, मूल मे और परिणाम मे मिथ्यात्व का कारण बन गई । इसलिए सम्यक्त्व को विशुद्ध रखने के लिए निग्रंथ-प्रवचन के पूर्णरूप से अनुकूल रहना चाहिए।
२२ प्रक्रिया मिथ्यात्व क्रिया का निषेध करना, संसारी आत्मा को अक्रिय मानना, तथा आत्म-शुद्धि की क्रिया को नही मानना-प्रक्रिया' नामक मिथ्यात्व है।
प्रक्रियावादी मानता है कि "आत्मा अक्रिय-हलन चलन स्पन्दनादि क्रिया से रहित और स्थिर है। वह अपने ज्ञानभाव-उपयोग मे ही रहता है । क्रिया करना प्रात्मा का धर्म नही है । क्रिया, जड मे होती है और जड़-कर्म को उत्पन्न करती