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यथार्थ दृष्टि की आवश्यकता
अतएव सम्यक्त्व की प्राप्ति, संरक्षण एवं दृढीकरण के लिए सम्यक्त्व के विषय मे विचार-विमर्श करना अत्यावश्यक है। मिथ्यात्व दशा मे तो अर्थ और काम पुरुषार्थ पर ही विमर्श हुआ, परन्तु सम्यक्त्व पाने के बाद अब धर्म और मोक्ष पुरुषार्थ पर विचार-विमर्श करना है । अनादि काल से प्रात्मा ने कर्म की शिक्षा ली, किन्तु अब तो धर्म की-कर्म से एकदम उल्टी शिक्षा लेनी है। कर्म की शिक्षा, ससार को दीर्घ से दीर्घतर करने वाली है, तब धर्म की शिक्षा ससार की जड़ काटकर अजर अमर बनाने वाली है।
मिथ्यात्व दशा में स्वार्थ संस्तव था । सम्यक्त्व प्राप्त होने पर अब परमार्थ संस्तव करना आवश्यक है। मिथ्यात्व में कुदृष्टा एवं स्वार्थ सेवा थी, तब सम्यक्त्व मे सुदृष्ट परमार्थ सेवन हितकर है । मिथ्यात्व दशा, कुदर्शनी एवं दर्शन-भ्रष्ट की संगति कराने वाली है, तब सम्यक्त्व, उस कुसंगति का त्याग करवाकर आत्मा को पवित्र होने की स्थिति में लाने वाली है। सम्यक्त्व का काम प्रात्मा की दिशा बदलकर सही मार्ग का दर्शन करवाना है । अतएव सम्यक्त्व के विषय में विमर्श करना आवश्यक है।
यथार्थ दृष्टि की आवश्यकता
संसार मे जितने भी झगडे होते हैं, उनमें दृष्टि-भेद ही मूल कारण होता है। चाहे सामाजिक हो, या राज