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१६ लौकिक मिथ्यात्व
लोकोत्तर परम-सत्य को और उसके निमित्त सुदेव, सद्गुरु और सम्यग्-धर्म की उपेक्षा करके, लौकिक उपास्य की उपासना करना-"लौकिक-मिथ्यात्व" है । इसके तीन भेद हैं। १ देव विषयक २ गुरु विषयक और ३ धर्मगत लौकिक-मिथ्यात्व।
देव विषयक लौकिक मिथ्यात्व
जो रागद्वेष से युक्त है, जो कामी, क्रोधी, मायावी, लोभी और अहंकारी हैं, जिनका अज्ञान नष्ट नही हुआ । जो भक्तो को वरदान और विरोधियो को शाप देते हैं, जिनके गले मे नरमुड की माला है, जिनके हाथ मे शस्त्र है और बगल मे स्त्री है, तथा जो वाहन पर सवार होते हैं, वे सब लौकिक देव हैं। वे खुद लोक मे ही रचे हुए हैं और लोक मे परिभ्रमण करते रहने की उनकी परिणति है । उनके बताये विधिविधान भी लौकिक जीवन को ही स्पर्श करते हैं । इस प्रकार के लौकिक देवो को सुदेव के रूप मे मानना मिथ्यात्व है।
लौकिक कार्य के लिए ? यदि कहा जाय कि-"हम उन्हे सुदेव नही मानते और मोक्ष के लिए उनकी उपासना नही करते, किंतु सासारिक स्वार्थ की सिद्धि के लिए उन्हे मानते हैं, इसलिए हमे मिथ्यात्व नही लगता । श्रावको के लिए छ प्रागार भी तो सूत्र मे रखे गये हैं" ? इस प्रकार के बचाव के समाधान में कहा जाता है कि