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तटस्थता नहीं
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एक प्रकार का ही मिथ्यात्व होता है।
अनाभोग-मिथ्यात्व मे जीव ने जितना समय गंवाया, उतना अन्य मिथ्यात्व मे नही गंवाया। अनन्तकाल की स्थिति है, तो केवल अनाभोग-मिथ्यात्व की ही । वनस्पत्तिकाल जितनी स्थिति इसी मिथ्यात्व की है।
तटस्थता नहीं यदि कोई सोचे कि-' यह स्थिति पक्षपात और मतवाद रहित तटस्थ अवस्था की है । जो पक्षपात मे पड़कर एक को खरा और दूसरे को खोटा कहते हैं, उनकी अपेक्षा यह स्थिति अच्छी है, इस प्रकार सोचने वाले वास्तविक स्थिति से अनभिज्ञ हैं । यह स्थिति तटस्थता की नही, किंतु उस बेहोश व्यक्ति जैसी है, जिसे अपने हिताहित का कोई भान ही नही है । कोई लट ले, काट डाले या जला डाले, तो भी वह कुछ भी नही कर सकता । मन के अभाव में इस प्रकार की गाढ-मूढता को तटस्थता अथवा निष्पक्षपातता कहना-वैसी ही भूल है,जैसी अपंग, मच्छित और मरणासन्न व्यक्ति को क्षमाशूर मानने मे है।
अनाभिनहिक मिथ्यात्वी मे तटस्थता होती है, किंतु वह तटस्थता सत्य और असत्य के मध्य होती है । इसलिए वह सत्य का आदर करने वाला भी नही माना जाता, क्योकि वह दोनो को समान कोटि मे स्थान देता है। सम्यग्दृष्टि वही हो सकता है, जो असत्य पक्ष को नही अपनाता है और सत्य को स्वीकार करता है। मिश्र-पक्ष की दशा शुद्ध नही, मैली ही होती है।
को समान को वाला भी नही मानता है। इसलिए