________________
सभी समान नहीं
यहा सरलता कोमलता एव नम्रता तो है, लेकिन हेय, ज्ञेय, उपादेय का विवेक नहीं है । महात्मा और कसाई सब को समान कोटि मे मानने की बुद्धि यहा स्पष्ट रूप से पाई जाती है। जैन-धर्म इस प्रकार की दृष्टि को स्वीकार नही करता। गुण-दोष की सम्यक् परीक्षा करने की दृष्टि और हेयोपादेय का विवेक जैन-धर्म ने स्वीकार किया है।
जिस प्रकार भिन्न जाति की प्रत्येक वस्तु के मूल्य में अन्तर रहता है, सभी का मूल्य समान नही होता, उसी प्रकार सभी मत समान नही होते । जिस प्रकार अनेक प्रकार की धातुएँ और खनिज पदार्थ, पृथ्वी मे रहे हुए हैं, किंतु उनमे उत्तम जाति का रत्न सबसे श्रेष्ठ होता है, उसी प्रकार ससार मे माने जाने वाले धर्मों मे कोई एक धर्म ही सर्वश्रेष्ठ है, सभी धर्म समान नहीं हो सकते।
साधारण बुद्धि वाले बन्धुओ की समझ मे सरलता से मा जाय, इस दृष्टि से धर्म के जघन्य, मध्यम और उत्तम ऐसे तीन भेद किये जा सकते हैं।
___ जघन्य धर्म-इस कोटि मे वे धर्म पाते हैं, जिनमे पापीप्रवृत्तियो की प्रधानता रही हुई है। अपने हित और सुख के लिये दूसरो का अहित करना, दुख देना और हत्या करना उनमे उपादेय होता है । पश-बलि आदि पाप कर्मों का विधान किया जाता है। धर्म, देव और राष्ट्र के नाम पर अत्याचार किया जाता है। इस प्रकार भौतिकवादी विचार घराने वाले धर्म, अधोगति के दाता है । अधर्मी होते हुए भी ऐसे लोग धर्मी