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________________ मुक्त को अमुक्त मानना मिथ्यात्व है। कई मतावलम्बी, मुक्तात्मा (सिद्ध भगवान् । को इच्छा, कामना, अर्थात् राग, द्वेष युक्त मानते हैं। उनका अवतार लेना लिखते हैं, वे वास्तव मे अनभिज्ञ है। जो मुक्त है, वह बन्दी नही हो सकता और जो बन्दी है, वह मक्त नही है। जिसे पुन: अवतरित होना माना जाता है, वे मुक्त नही हैं, या तो वे काल्पनिक ईश्वर हैं, या फिर अमुक्त है। क्योकि मुक्तात्मा के पुन अवतरण का कोई भी कारण शेष नही रहता । जन्म. मरण के कारणो का प्रात्यन्तिक नाश कर देने से ही वे मुक्त हुए हैं । जन्म वही लेता है, जो पाठो कर्म मे बन्धा हुआ हो । ईश्वर कर्तृत्ववादियो के संसर्ग दोष से, बहुत-से जैनी भी शुभाशुभ फल का कारण, ईश्वर को मान कर कहा करते हैं कि-'यह जो कुछ दुखद घटना घटी, इसमे मनुष्य का क्या दोष है, प्रभु की जो इच्छा होती है वही होता है।" कोई मर जाय तो-"भगवान् ने उसे उठा लिया," " भगवान मृतात्मा को शाति दें," इस प्रकार अनेक तरह से सर्व-मुक्त परमात्मा को, अमुक्त संसारी जीव के समान बतलाने की भल करते हैं । कुछ वर्ष पूर्व, जैन संस्था के एक जैन अध्यापक का, सम्यग्दर्शन मे प्रकाशनार्थ एक लेख पाया था। भगवान् महावीर की जयती के विषय में उन्होने लिखा था। उनके लेख मे भगवान् से प्रार्थना की गई थी कि "देश में अन्न का भयंकर दुष्काल है । प्रतिवृष्टि और अनावृष्टि ने फसलो को नष्ट कर दिया है। गरीबो की हालत बड़ी दयनीय हो रही है, इसलिए हे वीर ! यदि सचमुच श्राप
SR No.010468
Book TitleSamyaktva Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1966
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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