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अमुक्त को मुक्त मानना
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- कोई रमणियो के रंग मे रगे हुए हैं। ललनाओं के साथ भोग-विलास, गान और नृत्य करते हुए अपने उत्कृष्ट भोगीपन का परिचय दे रहे है । कोई अनीतिपूर्वक परस्त्रियो के साथ अभिसार करते है, उनके साथ अनैतिक आचरण करते हैं, हजारो रानियां होते हुए भी नई-नवेलियो के लिये युद्ध करते है या हरण करके ले जाते हैं, वे मोह के महा-पाश से तो मुक्त हुए ही नही, फिर कर्मों के वज्र-बन्धनो से कैसे मुक्त हो सकते हैं?
कई योगी, अवधूत और ऋषि कहलाते हैं, फिर भी अर्धांगना का साथ तो लगा ही हुआ है। रमणी के बिना वें रह ही नही सकते और योगी अवस्था में ही जिनके सन्तान होती है, जिनके अर्धागना होते हुए भी परस्त्री पर रीझ जाते हैं, जिनकी लंगोट की सचाई का भी विश्वास नही, उन्हे मक्त, अमर एवं मृत्युजय कैसे माना जा सकता है ?
जिसके राग नही होता, वह न तो स्त्रियो से सम्बन्ध रखता है और न भोग-विलास मे डूबा रहता है । काम-भोग मे प्रासक्त व्यक्ति, वीतराग हो ही नही सकता । फिर जो मादक वस्तुओ का प्रेमी होकर मदोन्मत्त बनता है, उसे राग-मुक्त कैसे कहा जाय ? और जो राक्षसो, अनार्यों एवं अंसुरो का संहार करने के लिये विकराल बनकर प्रलय मचा देते हैं जिनके पास संहारक अस्त्रादि बने रहते हैं, क्या वे भी द्वेष-मुक्त हो सकते हैं?
कोई मुक्त माना जाने वाला, हाथ में माला रखकर जाप करता हुआ दिखाई देता है । इससे यह स्पष्ट होता है कि