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सम्यक्त्व विमर्श
मिथ्यात्व बहत बढ गया था। वर्तमान में भी परिस्थिति लगभग वैसी दिखाई देती है। प्रचार के साधनो की बहुलता के कारण एक व्यक्ति का मिथ्या प्रचार भी राष्ट्र-व्यापी हो जाता है और धर्म-तत्त्व के अनजान लोगो को वेश का आकर्षण ले डूबता है।
८ साधु को असाधु मानना जिनमे साधुता के गुण हो, उन्हे असाधु मानना भी मिथ्यात्व है । जो नाम, स्थापना, द्रव्य और वेश मात्र से ही साधु नही, किंतु द्रव्य और भाव से साधु हो, वे ही वास्तविक साधू होकर वंदनीय होते है । जिनके अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानी और प्रत्याख्यानी कषाय की तीन चौकडिये उदय मे नही हो, जो सम्यग्दृष्टि पूर्वक सर्वविरति का सम्यग् रूप से पालन करते हो, पाच महाव्रत, रात्रि भोजन त्याग और पाच समिति, तीन गुप्ति युक्त हो, दस विध समाचारी के पालक हो और जिनेश्वर भगवान् की आज्ञानुसार चलने वाले हो, वे ही खरे साधु है । ऐसे वास्तविक साधुओ को साधु नही मानना भी वैसा ही मिथ्यात्व है, जैसा गुणहीन अथवा असंयत, अविरत और असम्यगदृष्टि को साधु मानना है।
चाहे जितना धुरन्धर विद्वान हो, चतुर हो, वाक्पटु हो, प्रभावशाली वक्ता हो, हजारो लाखो और करोड़ो पर अपना प्रभाव रखने वाला हो, उसका जीवन सादा ही नही, किंतु अनेक प्रकार के यम नियम और कठिन तप से युक्त हो, किंतु उसकी दृष्टि शुद्ध नहीं हो, उद्देश्य संसार-लक्षी हो और सम्यक