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सम्यक्त्व विमर्श
वर्ण, गंध, रस और स्पर्श है, अर्थात् सुनाई देने वाला शब्द, दिखाई देने वाला वर्ण (रूप) सूघने मे आनेवाली गंध, जिव्हा द्वारा चखे जानेवाले रस और हाथ आदि शरीर से छुए जाने वाले स्पर्श, ये सब पुद्गल-जड के लक्षण हैं। धूप, अन्धकार, प्रकाश, छाया आदि भी अजीव के ही लक्षण है । दृश्यमान पुद्गल पदार्थ मे भी अनन्त द्रव्य ऐसे है कि जो हमारे जैसे चर्मचक्षु वालो को दिखाई नही देते । जो सूक्ष्म अर्थात् बहुत बारीक पुद्गल (परमाणु, सख्यात और असख्यात प्रदेशवाले) हैं, वे तो हमारे देखने में आते ही नहीं और अनन्त प्रदेशात्मक द्रव्य भी हमे सभी दिखाई नही देते, किंतु उनमे से कुछ ही दिखाई देते है। वायु, गध, शब्द आदि रूपी अजीव द्रव्य है और इन्हे हम जानते हैं, किंतु आखो से इनका रूप नही देख सकते, क्योकि हमारी आखे मर्यादा के अनुसार ही वस्तु को देख सकती है।
दिखाई देने वाली सभी वस्तुएँ अजीव ही है, उनमे से बहुत-सी ऐसी वस्तुएँ हैं कि जिनमे जीव का निवास है । जैसेमिट्टी, पत्थर, पानी, वृक्ष, लता, फल, पुष्प, बीज, अग्नि, कीट, पतंग, कीडे-मकोडे, पशु, पक्षी और मनुष्य आदि । इनके सब के शरीर तो अजीव हैं, किंतु अजीव शरीरो मे जीव निवास करता है, इसलिए उसे भी 'जीव' कहते है। । दृश्यमान वस्तुएँ निरी अजीव भी हैं, जैसे कागज, कलम, थाली, लोटादि धातु-पात्र, मेज, कुर्सी, चित्र, मूर्ति, घर, मकान, सोना, चाँदी, रुपया,पैसा,वस्त्र, आदि । इन सब को जीव मानना; अथवा सबको एक ईश्वर के ही भिन्न भिन्न रूप समझना गलत