________________
सुमार्ग को कुमार्ग मानना
११९
बंधन । मुक्ति तो बन्ध विच्छेद और निर्जरा से ही है। मुक्ति की दृष्टि से बन्ध मात्र हेय है । जन्म-मरण की परम्परा वाला मार्ग, सुमार्ग नही हो सकता । जिस मार्ग से मृत्युजय पद की प्राप्ति (बन्ध का नाश) होता हो, वही सुमार्ग है-निर्वाण मार्ग है । इसके अतिरिक्त सब संसार मार्ग है।
जिन्हे सद्भाग्य से या क्षयोपशम के बल से मोक्ष मार्ग प्राप्त हो गया, उनमे से कुछ ऐसे उन्मार्गी भी निकले है, जो संसार मार्ग के प्रचारक बन गये हैं। रजोहरण मुखवस्त्रिका रखते हुए भी वे मिथ्यात्व के पात्र बन गये हैं। कोई ग्रामोद्योग रूपी आरम्भ समारम्भ के प्रचारक बन गये हैं, तो कोई स्त्रियो की ओर आकर्षित होकर उनके स्वाच्छन्द्य के पोषक बन रहे है । तात्पर्य यह कि संसार मार्ग की रुचि के कारण वे मक्ति मार्ग से गिर गये हैं।
सम्यग्-दृष्टि जीवो को चाहिए कि वे कुमार्ग को दुख दायक जानकर उससे दूर ही रहे और आत्म स्वातन्त्र्य (जड के बन्धनो से मुक्ति दिलाने वाले ऐसे जिनेश्वरो के धर्म मे अत्यन्त आदरवाले बनकर भव-बन्धनो का छेदन करने मे उद्यमवत होवे ।
४ सुमार्ग को कुमार्ग मानना जिस प्रकार कुमार्ग को सुमार्ग मानना मिथ्यात्व है, उसी प्रकार सन्मार्ग को कुमार्ग अथवा मोक्ष-मार्ग को संसार मार्ग मानना भी मिथ्यात्व है । संसार मार्ग तो अनेक है, अगणित हैं और मुक्ति मार्ग केवल एक ही है। जो मार्ग, जीवो को रोग, शोक,