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सम्यक्त्व विमर्श
मुक्ति का लक्ष होने पर भी उसके सही मार्ग की तथा सदुपाय की ठीक जानकारी नही होने पर वह भी संसार का कारण बनती है। क्योकि मार्ग गलत है-कुमार्ग है । बम्बई जाने का लक्ष होते हुए भी यदि बम्बई की दिशा मे नही चलकर,उल्टे या अगल बगल का रास्ता अपनाया जाय, तो वह कुमार्ग ही होगा और कुमार्ग का आश्रय लेना मिथ्यात्व ही है । कुमार्ग से ईष्ट प्राप्ति नही हो सकती । अतएव कुमार्ग का स्वीकार भी मिथ्यात्व ही है।
___ ससार मे दो प्रकार के जीव है । एक तो प्रारम्भ से ही कुमार्ग मे लगे हुए हैं और दूसरे प्रकार के जीव, पहले तो सन्मार्ग मे चलते है, किंतु बाद मे मति-भ्रम से या किसी के बहकाने से सद्मार्ग को छोडकर कुमार्ग मे लग जाते हैं । जैन श्रमण वर्ग में कई ऐसे भी है, जो पहले मोक्षमार्ग मे दीक्षित हुए और कुछ चले भी, किंतु बाद मे कुशिक्षण, कुसगति अथवा लोकषणा मे पडकर सुमार्ग से हट गये । उनकी शक्ति कुमार्ग के प्रचार मे लगने लगी । वे दूसरे साधु साध्वी और हजारो लाखो उपासक वर्ग को कुमागे में घसीट गए।
बन्धन का मार्ग ही कुमार्ग है-संसार मार्ग है । इसके अनेक भेद है । कुछ तो निरे अधोगति-नरक तिर्यंच गति की ओर ही ले जाने वाले है और कुछ लौकिक दृष्टि से सदाचार पालन तथा जनसेवा और अज्ञान कष्ट आदि से, देव मनुष्य गति के योग्य बन्धन का उपार्जन कराते हैं। चाहे नरक तिर्यंच गति के हो या फिर मनुष्य और देवगति के ही हो, है दोनो ही