________________
८४
सम्यक्त्व विमर्श
N
M
आम प्रचार होता है वहाँ तो अनाचार ही मानना पड़ेगा।
४ परपाषंडी प्रशंसा मिथ्यामति एव मोक्षमार्ग के विपरीत प्रचारको की प्रशंसा करना भी जिनधर्म के लिए हानिकारक हो जाता है। कोई कोई अजैन, अपने जप, तप, साधना और प्रभाव मे, सामान्य मनुष्यो से कुछ अधिक विशेषतावाले होते हैं । पुण्य प्रकृतियो के उदय से उनकी प्रख्याति भी खब होती है। वे लाखो करोडो के लिए वंदनीय हो जाते है। उनके द्वारा जनता की राजकीय अथवा सामाजिक कठिनाइये दूर होती है, वे लोगो की पौद्गलिक सुविधाओ के लिए प्रयत्नशील बने रहते हैं, उनके जीवन का अधिकाश भाग जनता की सेवा मे जाता है, उन के वचन प्रभावशाली होते है। इस प्रकार के विशेप व्यक्तियो से प्रभावित होनेवाले लोग, उनकी प्रशंसा करते हैं। उस प्रशंसा से प्रभावित होकर कई जैनी भी अपने धर्म के प्रति अश्रद्धालु होकर उनके और उनके सिद्धात के प्रति श्रद्धालु बन जाते हैं । जो लोग, धर्म के तत्त्वो को बराबर जानते नही, या वंश परम्परा से जैनी बने हुए है, या व्यक्ति विशेष के कारण जैन धर्म से सम्बन्धित हैं, ऐसे अनभिज्ञ व्यक्तियो पर दूसरो का प्रभाव पडना सरल होजाता है । जैनियो मे भैरूं, भवानी, चण्डी, मुण्डी आदि को मानने पूजने का रिवाज चालू होने मे एक कारण, परपाषण्डी-प्रशसा का भी हुअा है। उन मिथ्या देवो की प्रशसा सुनकर. जिन-भक्त प्रयवा जन माने जाने वाले लोग भी