________________
लेखक की ओर से
सम्यक्त्व का विषय अत्यंत महत्वपूर्ण है। धर्म का आधार और द्वार ही सम्यक्त्व है । सम्यक्त्व के द्वार में प्रवेश करके ही । धर्म के भव्य भवन में प्रवेश किया जा सकता है। सम्यक्त्व की भूमिका पर रहनेवाला ही मोक्ष-सुमेरु के शिखर पहुँच सकता है । अतएव प्रत्येक जैन धर्मानुयायी को सम्यक्त्व का विषय समझना परमावश्यक है। सम्यक्त्व, मोक्ष की पक्की गारटी है । जिसने सम्यक्त्व का एक बार, थोडी देर के लिए भी स्पर्श कर लिया, उसने मोक्ष मे अपने लिए स्थान बना लिया। सम्यक्त्वी के लिए मोक्ष की गारटी, तीर्थकर भगवान् ने दी है और प्रागम तथा अन्य शास्त्र इसके साक्षी हैं । सम्यक्त्व से रहित जीव की साधना, पाराधना से वचित रहती है। कठोर एव उग्र साधक भी सम्यक्त्व के अभाव मे विराधक ही रहता है।
'सम्यक्त्व' के विषय को स्पष्ट करने के लिए, सम्यगदर्शन वर्ष ८ सन् १९५७ के प्रारंभ-ता. ५-१-५७ के प्रथम अंक से ही "सम्यक्त्व विमर्श" शीर्षक एक लेखमाला चाल की थी, जो वर्ष ६ अंक २४ ता. २०-१२-५८ तक बराबर चलती रही। जब यह लेखमाला चल रही थी, तभी कई पाठको और सौराष्ट्र के कुछ संतो की ओर से इस पर विशेष रुचि, और लेखमाला को पुस्तक के रूप में देखने की अभिलाषा व्यक्त हुई