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________________ रबी की नान्ति पर्याय पलट जाती है. यथा दृध से दही इत्यादि. (३) गुरु-लघु सो वायु (पवन)आदिक (४)अगुरु-लघु सो परमाणु आदिक संख्यात आकाश परदेशोवगाम सदन खंध इत्यादि. और यह नी समझना आवश्यक (जरूरी) है कि जिसका नाम परमाणु अर्थात् परे से परे गेहा, जिसके दो नाग न हो सके ऐसे अनन्त परमाणु मिल कर एक स्थूल पदार्थ दृष्टिगोचर (नजर में आनेवाला) बनता है. यघा दृष्टान्तः-६ मासे जर सुरमे की मती जिसको मनुष्य ने खरल में माल कर मूसल का प्रहार किया, [चोट लगाई तो उसके कई एक खाम (टुकमे) हो गये. ऐसे ही मुसल लगते जद बहुत गट्टे टुक हो गए और मसल की चोट में न आये तो रमाना शुरू किया: तीन दिन तक रगमा. अब कहोजी! कितने ग्वाम (टुको)दुपा परन्तु जिनने वह --
SR No.010467
Book TitleSamyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherKruparam Kotumal
Publication Year1905
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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