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नता है; फिर उस मल की मिट्टी हो जाती है; फिर उस मीट्टी के प्रयोग से खरबूजे
आदिक फल हो जाते हैं; फलों को खा कर फिर विष्टा, फिर मिट्टी, फिर फल इत्यादि शुन्न अशुल पर्याय पलटने का स्वनाव होता है.और पुद्गल के मूल धातु चार हैं:र वर्णमय, शगंधमय, ३ रसमय, ४ स्पर्शमय. इन चारों धातुओं के मिलने से पुद्गल की चार प्रकार की पर्याय में से पर्याय पलटती :-. गुरु, लघु,३ गुरुलघु, ४ अगुरुसघु. जब गुरुपर्याय को पुद्गल प्राप्त होता है तव किस रूप में होता है ? यथा पत्थर धातु आदिक; अर्थात धातु की और पत्थर की गोली बजन में रत्ती की भी होगी, उस को दरिया के जल पर धर देव तो वह अपनी गुरु अर्थात् नारी पर्याय के कारण से जल में डब कर तले में जा बैठेगी. और दूसरा लघु पर्याच बाला पुदगल, काष्ठ आदिक;