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के पूर्व कर्म के उदय से निन्दा हुई. परन्तु उस निन्दा के होने से क्या वह उर्गति (खोटी गती) में जायगी ? अपि तु नहीं. . हे भव्य जीवो ! इस प्रकार से प्राणी स्वतंत्रता सेनये कर्म करता है,और परतंत्रता से पुराने कर्म नोगता है; और इसी प्रकार सांसारिक राजाओं के जी दण्म देने के कानून है कि जो इरादे से खून आदि कसूर करता है उसे अख्तियारी नया कर्म किया जान के दम देते हैं और जो विना इरादे कसूर हो जाय तो उसे वे अख्तियारी अमर जान कर छोड़ देते हैं. इस रीति से पूर्वोक्त कर्म,कर्म का फल जुगता ते हैं. ___और ऐसे ही चाणक्य जी अपनी वनाई दुई लघुचाणक्य राज नीति के आठ वें अध्याय के एवें श्लोक में लिखते हैं:
श्लोक. सुखस्य ःखस्य न कोऽपि दाता, .