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________________ ६‍ J और प्रयोग से दुष्ट कर्मों में स्थित हुए सत्संग शुभ मति के प्रयोग से श्रेष्ठ कर्मों में स्थित हुए अर्थात् यह जीव नये कर्म करने में स्वतंत्र है; और पश्चात् काल पूर्व जन्मांतर में कर्मों के वश परतंत्र होके जोगता है; अर्थात् जो कर्म योगों से ( इरादों से ) किया जावे वद नूतन कर्म होता है, उसका फल आगे को होता है. और जो कर्म विना इरादे से आप ही हो जाये वद पुराकृत - सञ्चित कर्म का फल जोगा माना जाता है; उसका फल आगे को नहीं होता. यथा किसी एक मनुष्य ने एक ईंट बेमौका पमी देख कर अपने घर से बादर को सहज जाव से, फेंक दी, परन्तु वह किसी पुरुष की आंख में जा लगी; उसकी प्रांख फूट गई तो वडा शोर मचा और उसके घर के कहने लगे कि, परे तैने ईंट मार केही प्रांख फोम दी, वह कहने लगा, कि, नहीं जी ! मैने तो ये खयाल फेंकी थी, इसके -- 7 1 L 4 ,
SR No.010467
Book TitleSamyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherKruparam Kotumal
Publication Year1905
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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