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पर छुरी फेर ही देनी है; ऐसे कहते हुए ने लकीर बैंच दी; अब यह लकीर खेंचने की क्रिया तो दोनों ही की एकसी है,परन्तु श्चा (शादे) दोनों के पृथक् २ ( न्यारे ३) हैं. इस श्हा की आकर्षण शक्ति से एक प्रकार का सूक्ष्म मादा अन्तःकरण रूपी मेद में इकट्ठा हो जाता है, जसको हम “कर्म" कहते हैं; जिसको अन्यमतानुयायो (और मतों वाले) लोग जी सञ्चित कर्म' कहते हैं, सञ्चित के अर्थ दी, किसी वस्तु के इकठे करने के हैं.
आरियाः-कर्म का फल कर्मों के कारण रूप होनेसे ही नोगा जाता है ईश्वर नहीं झुगताता है, यह तुम युक्ति ( दलील ) से ही कहते हो वा किसी शास्त्रका भी लेख है ? ।
जैनी:-तुम लोग तो शास्त्रों को मानते ही नहीं हो. तुम तो केवल युक्ति (दलील) को हीमान ते हो. यदि शास्त्रों को मानो तो शास्त्रों