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जुगताने में ईश्वर को कसाई-पापी वनाने पर्छ? यदि ऐसे कहोगे कि वह गौ का जीव स्वतंत्र है,
अपनी अख्तियारी से कर्म करता है, तो . फिर वह जिव स्वयं ही कर्ता अर्थात् अपने कर्मों का कर्ता (अपने फेलों का फायल) रहा, इस से ईश्वर तो कर्ता न ठहरा. यदि ऐसे कहोगे कि ईश्वर ने ही जीवों को स्वतंव्रता (अख्तियार) दिया है, तो फिर वही दो दोष विद्यमान (मौजूद) हैं: (१) अल्पज्ञता
और (२) अन्यायता.यदि यह कहोगे कि वह कर्मनीश्वर ही ने करवाये हैं,तब तुम आप ही समऊ लो कि तुम्हारे ईश्वर की कैसी दयालुता और न्यायता है! तुम्हारी नान्ति मुसल्मान दोगनी खुदा को कर्त्ता मानते हैं.
मुसल्मानः-खुदा के हुक्म विना पत्तानी नहीं दिल सकता.
जैनीः-खुदा को क्या र मंजूर है ? - मुसल्मानः (१) रहम दिली, (२) स
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