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सुसन्न-६ अर्थात् होश्यार हो जावे तोराजा को कैसे समझना चाहिये ?
आरियाः-अन्यायशाली अर्थात् बेइनसाफ.
- जैनी:-बस! अव देखिये कि तुम्हारे ही मुख से ईश्वर को राजा की तरह का मानने में तीन गुणो का तो नाश सिह हो चुका.
आरियाः-किस प्रकार से ? ... जैनी:-क्या तुम्हें प्रतीत (मालूम) नहीं हुआ ?
आरियाः-नहीं.
जैनीः-लो, सुनो ! जब कि तुम ईश्वर के कर्तत्व अर्थात् कर्ती होने के विषय में राजा का दृष्टान्त देते हो, तो इस में युक्ति सुनो. नला! यह तो बताइये कि चोर ईश्वर की प्रेरणा (श्वा) से चोरी करने में प्ररत्त होता हे वा अपनी श्बा से?