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२ - जैनी:- तो फिर ईश्वर जी हमारा ही जाई.उहरा; जैसे हम अनेक कर्म करते हैं एसे ही ईश्वर जी करता हैं तो फिर जिल प्रकार ले हम को कर्म का फल भोगना पडता है, इसी प्रकार से ईश्वर को भीनोगना पनला होगा; वा, जैसे हमें कर्म फल जुगताने वाला ईश्वर को मालते हो, ऐसे ही ईश्वर को नीको
और ही कर्म फल जुगताने वाला मानना पमेगा.
(आरिया मौन हो रहा.) . . जैनी-जीव स्वतंत्र दै वा परतंत्र ? ;
आरियाः स्वतंत्रः
जैनी:-जीव में स्वतंत्रता अनादि है वा आदि ? स्वतः सिच है वा. किसीने दी है? यदि अनादि मानोगे तो जीव स्वयं ही कर्त्ता सिद्ध हुआ; इसमें फिर ईश्वर की क्या आवश्यकता (जरूरत) रही ? यदि आदि से(किसी की