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इचा के अनुसार सृष्टि के रचने वाला मानते हो. . . ". - आरियाः-हां ! इसको तो हम स्विकार करते हैं. .
..जैनी-न्याय करना जी तो एक कर्म ही है; और दक देना नी एक कर्म ही है. श्वा जी तो अन्तःकरण की स्थूल प्रकृति (कर्म) है. सृष्टि का रचना ली तो कर्म है .
आरियाः-(किञ्चित् मौन हो कर) दां! मुझे स्मरण है कि हमारे “ सत्यार्थ प्रकाश ” के ६३४ पृष्ठ की १२ पंक्तिमें ईश्वर और उ
सका गुण कर्म स्वन्नाव ऐसे लिखा है... ... ....... .जैनी जला! यह तो बताओ. कि ईश्वर कोन से और कितने कर्म करता ? ...
...आरियाः कर्मों की संख्या (गिनती) तो नहीं की है....