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समूह रूप जगत् १ काल (समय) २ स्वन्नाव (जम
में जमता चेतनमें चैतन्यता) ३ आकाश (सर्व पदा__ों का मकान) ४ इन को प्रवाह रूप अकृत्रिम (विना किसी के वनाये) अनादि मानते हैं।
-अवतार । ... ...... ४-धर्मावतार ऋषीश्वर वीतराग जिन देव को जैन धर्म का बताने वाला मानते हैं अर्थात् जि, - - धातु, जय, अर्थ में है जिसको नक प्रत्यय होने से , जिन, शब्द सिद्ध होता है अर्थात् राग द्वेष काम , क्रोधादि शत्रुयों को जीन के जिन देव कहाये, जि
नस्याय, जैन, अर्थात् जिनेश्वर देव का कहा दुश्रा . ___ यह धर्म उसे जैन धर्म कहते है ॥ - - -
ए-जैनी। ५-जैनी मुक्ति के साधनों में यत्न करने : • वालो को मानते हैं, अर्थात् उक्त जिनेश्वर देव के . __ कहे हुये जैन धर्म में रहे हुये अर्थात् जैन धर्म के'. ___ अनुयाईयों को जैनी कहते हैं ।
...:६-मुक्ति का स्वरुप। .... ... ६-मुक्ति, कर्म बंध से अबन्ध हो जाने श्र
व जन्म मरण से रहित हो परमात्म पदको प्राप्त .