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________________ ॐ श्री वीतरागाय नमः॥ ॥जैन धर्मके नियम॥ .१-परमेश्वर के विषय में। १ परमेश्वर को अनादि मानते हैं अर्थात् सि. द्धस्वरूप, सच्चिदानंद, अज, अमर, निराकार, निकलङ्क, निष्प्रयोजन, परमपवित्र सर्वज्ञ, अनन्त शक्तिमान् सदासर्वानन्दरूप परमात्मा को अनादि मानते हैं। -जीवों के विषय में। . ५-जीवोंको श्रनादि मानते हैं अर्थात् पुण्य पाप रूप कर्मों का कर्ता और नोक्ता संसारी अनन्त जीवोंको जिनका चेतना लक्षण है अनादि मानते हैं। ___३-जगत के विषय में। ३-जम परमाणुगों के समूह रूप लोक (ज__ गत्) को अनादि मानते हैं अर्थात् पृथिवी, पानी, - अग्नि, वायु, चन्छ, सूर्यादि पुदगलों के स्वन्नावसे
SR No.010467
Book TitleSamyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherKruparam Kotumal
Publication Year1905
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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