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अन्त रहित (अन्त नहीं जिसका) अर्थात्, अनादि-अनन्त ऐसें कहा है जो महात्मा कर्म क्ष्य करके मोक्षपद को प्राप्त हुए हैं ननकी अपेक्षा से तो सिद्ध, आदि सदित और अन्त रहित माना गया है; और जो सिघ पद परम्परा से है वह अनादि-अनन्त है.
(आरिया:-) वह नी तो कनी सिघब ना होगा. ' (जैनी:-) बना दुआ कदे तो आदि हुए अनादि की तो आदि नहीं हो सकती
और अनन्तका अन्त नहीं हो सकता क्योंकि जब सूत्रम सिछको-अनन्त कह दिया तो फिर बना हुआ अर्थात् आदि कैसे कही जावे ? - (आरियाः-) “सत्यार्थ प्रकाश" UGG प्रष्ट १३ वीं पंक्तिमें लिखा है कि जिस पदार्थको स्वन्नाघ 'एक देशी' होवे उसका गुणकर्म स्वनावनी 'एक देशी' हुआ करता है.
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