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१४ देवदत्त क्यों नहीं जानता है ? . . .
2, नास्तिकः-पृष्ठ १७५ वें में अविद्या , ‘की उपाधि से जिस शरीर में जिस जगह अ. 'न्यास (खयाल) है, वहां के ऊख आदि, अनुभव हो सकते हैं, और जगद के नहीं. यदि. दूसरे शरीर में अभ्यास होगा, तो उसका नी दुःख सुख दोता है, मित्र और पुत्र के दुःख सुख में सुखी सुखीवत् . '; जैनीः वद मन से भले ही सुख सुख .
माने; परन्तु पुत्र के शूल से पिताको शूल : ... नहीं होता है, ताप से ताप नहीं होता. : .....
...नास्तिक:-शरीर पृथक्श् (न्यारे) जो होते हैं. . . . . . . . . . .
जैनीतो फिर मन नी: तो न्यारे ही होते हैं. ..
नास्तिकः--तो देख लो पुत्र के दुःखमें पिताको दुःख होता ही है, तुम ही बताओ, कि कैसे होता है ? . ...
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