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१३ । हैं कि जिनको आनन्दगिरि शिष्यने अपनी
बनाई हुई पुस्तक शंकर दिग्विजय के 4G के : प्रकरण में लिखा है, कि मएमक ब्राह्मण
की ला- सरस वाणिसे संवाद में मैथुन रस के अनुनय विषय में बाल ब्रह्मचारी होने के कारण से हार गये, कि तुम सर्वज्ञ नहीं हुए हो, क्यों कि आनन्दामृत वर्षिणी में जो लिखा है, कि श्री स्वामी शंकराचार्यजीने ठे वर्ष की आयु में सन्यास ग्रहण किया. था. तो फिर उन्हों ने मरे हुए राजा की देह में प्रवेश कर के राणी से लोग किया, लव सर्वज्ञ दो गये, तां ते हिर सरस वाणि को उसका नेद बता कर विजय को प्राप्त हुए. . .
तर्कः-क्या तुम्हारे वेदान्तियों में यही सर्वज्ञता होती है ? ..
. . . (प्रश्न ए) . जैनी:-नला, तुम यह बताओ, कि यदि एक ही आत्मा है तो सोमदत्तका सुख