________________
और दूसरे क्या दयानन्द को तेरी तरह ज्ञान _ नहीं था कि निराकार और सर्व व्यापी काहे से, और कहां से, और कैसे बात कर सकता है ? लिखते तो इस प्रकार से हैं कि मानो दयानन्द के कान में दी ईश्वर ने ओडे आदमीयों की तरह बातें करी हों. परन्तु यह ख्याल न किया कि क्या सब ही मेरे कदने को दांश करेंगे? अपित विद्वान पुरुष ऐसे भी तो विचारेंगे कि वाणी (वात) करनी तो कर्मेन्दिय का कर्म होता है; तो क्या ईश्वर के कर्मेद्रिय आदिक शरीर होता है ? बस कुच्छ समऊना नी चाहिये. अव कदोजी! तुम्हारे स्वामीजी के ऐसे वचनों पर क्या धन्यवाद करें ? तब वह तो निरुत्तर हुआ. परन्तु इन दयानन्दियों में यह विशेष कर दम्नजाख है कि एक निरुत्तर हुआ और दूसरे ने एक और हो अनघडित सवाल का फन्द लगाया. खैर! फिर दूसरे समाजिये ने खमे हो कर लेकचर